गोधूलि में राह प्रियतम की
कैसे तके बाला
हर तरफ धुआँ धुआँ है
काला सयाह काला।
बढ़ी आबादी मानव ने
जंगल मिटा डाला ,
स्वच्छ हवा न स्वच्छ है जल ,
प्रदूषण का बोलबाला।
काट पेड़ अमृत को हमने
विष बना डाला ,
तपश बढ़ी है हर तरफ ,
जैसे जले ज्वाला।
ग्लेशियर पिंघल रहे गर्मी से
बाढ़ का आलम है
खुद के खुद दुश्मन'' बिमल''
किससे शिकायत है। *बिमला देवी *
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कैसे तके बाला
हर तरफ धुआँ धुआँ है
काला सयाह काला।
बढ़ी आबादी मानव ने
जंगल मिटा डाला ,
स्वच्छ हवा न स्वच्छ है जल ,
प्रदूषण का बोलबाला।
काट पेड़ अमृत को हमने
विष बना डाला ,
तपश बढ़ी है हर तरफ ,
जैसे जले ज्वाला।
ग्लेशियर पिंघल रहे गर्मी से
बाढ़ का आलम है
खुद के खुद दुश्मन'' बिमल''
किससे शिकायत है। *बिमला देवी *
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