Wednesday 10 September 2014

ईर्ष्या द्धेष में जलते रहे

यूं तो मन्दिर में बैठे हैं
          ईर्ष्या द्धेष में जलते रहे
 क्या तूने कहा क्या मैने कहा
              ये सोच सोच लड़ते रहे।

मान -सम्मान की खातिर हमने,
                     भक्ति के खेल रचाए हैं
मन से प्रभु का नाम जपो ,
                 प्रभु तब ही दौड़े आए हैं
हाथ में माला ,मुँह में प्रभु हैं ,
              फिर भी खुद को छलते रहे
                        क्या तूने कहा क्या मैने कहा
                     ये सोच सोच लड़ते रहे।

स्वर्ग में तूं चाहे बैठा है ,          
               नरक हुआ मन तेरा है
दो दिन की है चमक चाँदनी
             दो दिन का ये बसेरा है
चार जने जब ले जाएंगे ,
         तब सोचेगा  क्यों मरते रहे
 क्या तूने कहा क्या मैने कहा
               ये सोच सोच लड़ते रहे।

''बिमल  ''समय खुद को सम्भालो
               जपो प्रभु का नाम रे
मन की नज़र से जब देखोगे
                     सब में है भगवान रे
क्षमा धर्म है ,क्षमा कर्म है ,
           क्षमा से प्रभु मिलते रहे
 क्या तूने कहा क्या मैने कहा
             ये सोच सोच लड़ते रहे।
     
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