जिस धरती पर धरती को भी
माता समझा जाता है
नवरात्रों में कन्या को ;
विधाता समझा जाता है
वहीँ गर्भ में बेटियां अब
टुकड़े टुकड़े होती हैं
जीवन ज्योति जगने से पहले
मौत की नींद में सोती हैं
मन्दिरों में पूजा जाता
जन्म न पर होने दिया
कंजकों में पूजा जाता
पलने में न सोने दिया
पुरुष प्रधान समाज में नारी
बेबस ''बिमल ''यूँ होती है
कन्या भ्रूण हत्या करवाती ,
और छुप छुप कर रोती है। .
माता समझा जाता है
नवरात्रों में कन्या को ;
विधाता समझा जाता है
वहीँ गर्भ में बेटियां अब
टुकड़े टुकड़े होती हैं
जीवन ज्योति जगने से पहले
मौत की नींद में सोती हैं
मन्दिरों में पूजा जाता
जन्म न पर होने दिया
कंजकों में पूजा जाता
पलने में न सोने दिया
पुरुष प्रधान समाज में नारी
बेबस ''बिमल ''यूँ होती है
कन्या भ्रूण हत्या करवाती ,
और छुप छुप कर रोती है। .
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