धूप में
तपती रही मैं
तरस मुझ पर जरा न आया
और पेड़ थे
क्या लगाने
लगे हुओं को काट गिराया
मुस्कराना
खिलखिलाना
क्यों मेरा न तुझको भाया
मुझे नही
खुद को उजाड़ा
बिमल''इतना भी समझ न पाया।
तपती रही मैं
तरस मुझ पर जरा न आया
और पेड़ थे
क्या लगाने
लगे हुओं को काट गिराया
मुस्कराना
खिलखिलाना
क्यों मेरा न तुझको भाया
मुझे नही
खुद को उजाड़ा
बिमल''इतना भी समझ न पाया।
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