चेहरे मुखौटे बन गए ,
दिल बने खंजर
इस भूमि पर कुछ न उगेगा ,
हो गई जो बंजर।
नेहा के फूल ईर्ष्या की
अग्नि में जलकर रख हुए ,
कितने आशियाँ बिखर गए
कितने ही घर बर्बाद हुए.
औरो को गिराने की चाहत में ,
खुद का कर डाला अपमान
जब खुद की नज़र में गिरे 'बिमल '
क्या मिला तुझ को सम्मान।
****************बिमला देवी
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